पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए प्रेरणा का दस्तावेज है ‘लोगों का काम है कहना’

सुदर्शन व्यास, समीक्षक 

‘लोगों का काम है कहना’ पुस्तक का आखिरी पन्ना पलटते समय संयोग से महात्मा गांधी का एक ध्येय वाक्य मन मस्तिष्क में गूंज उठा ‘कर्म ही पूजा है’। जब मैं इस किताब को पढ़ रहा था तो बार बार महात्मा गांधी का ये वाक्य सहसा अंतर्गन में सफर कर रहा था। ये कहूँ तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि बापू के इस विचार को चरितार्थ उस शख्सियत ने किया है जिनके जीवनवृत्त पर ये पुस्तक लिखी गई है। प्रो. (डॉ) संजय द्विवेदी भारतीय मीडिया जगत में सुपरिचित और सुविख्यात नाम हैं। वरिष्ठ पत्रकार और मीडिया कर्मियों के लिए ये नाम इसलिए जाना पहचाना है क्योंकि संजय जी अनथक मीडिया के विभिन्न आयामों के जरिये सक्रिय रहते हैं। पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए यह नाम बड़े आदर से लिया जाता है। उल्लेखनीय है कि पत्रकारिता के विद्यार्थी संजय जी को मीडिया गुरु कहना ज्यादा पसंद करते हैं। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण मैंने देखा है कि माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के कुलसचिव तथा प्रभारी कुलपति की जिम्मेदारी का निर्वहन करते हुए भी विद्यार्थियों को बतौर शिक्षक पढ़ाना उनकी दैनंदिनी रही थी। इसीलिए प्रो. (डॉ) संजय द्विवेदी देशभर में पत्रकारिता के कुनबे की हर पीढ़ी में एक पत्रकार, एक शिक्षक, एक लेखक, एक विश्लेषक, एक विचारक और मीडिया गुरू के रूप में सम्मान के साथ याद किये जाते हैं।
प्रो. (डॉ) संजय द्विवेदी पर एकाग्र पुस्तक ‘लोगों का काम है कहना...’ उनके व्यक्तित्व के साथ ही कृतित्व पर मूलतरू आधारित है। पुस्तक में देश के 14 मूर्धन्य विद्वानों द्वारा द्विवेदी जी के विचारों, उनके लेखकीय और प्रशासकीय यात्रा का जिस तरह से वर्णन किया है, इससे यह स्पष्ट होता है कि अपने जीवन का एकदृएक क्षण पत्रकारिता और लेखन को समर्पित कर देना संजय जी का मानो एकमात्र लक्ष्य हो। वैसे, प्रो. द्विवेदी जी के व्यक्तित्व और कृतित्व पर आधारित यह पहली पुस्तक नहीं है। इससे पहले ‘कुछ तो लोग कहेंगे’, ‘संजय द्विवेदी का सृजन संसार’ और ‘जो कहूंगा सच कहूंगा’ प्रकाशित हो चुकी हैं और इन पुस्तकों को मीडिया के मोहल्ले में खूब सराहा भी गया। 
‘लोगों का काम है कहना’  शीर्षक अपने आप में प्रो. द्विवेदी के विचारों को सु-स्पष्ट करता है। मैं पुस्तक के संपादक लोकेन्द्र सिंह को बधाई दूंगा कि उन्होंने यह शीर्षक चुना। यह शीर्षक ही अपनेआप में एक बड़ा अध्याय या कहूं कि किताब की तरह है, जो कि प्रो. द्विवेदी के जीवनवृत्त को उजागर करता है। प्रो. द्विवेदी के व्यक्तित्व से स्पष्ट झलकता है कि वे अपने काम में सदैव मगन होकर, व्यर्थ में एक क्षण गवाएँ बिना अपने लेखन कार्य के माध्यम से देश तथा समाजहित में सदैव कार्यरत रहते हैं। ‘कुछ तो लोग कहेंगे या लोगों का काम है कहना’ दृ ये विचार आदरेय संजय जी का जीवन दर्शन है, क्योंकि ये कहने की जिम्मेदारी उन्होंने लोगों को देकर रखी है। यही कारण भी है कि वे डेढ़ दशक से अधिक समय पत्रकारिता में सक्रिय रहे। राजनीतिक और मीडिया संदर्भों पर अबतक लगभग 3 हजार से अधिक आलेख प्रकाशित हो चुके हैं। मीडिया शिक्षा के क्षेत्र में 18 वर्षों से अधिक का अनुभव तथा माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय में प्रभारी कुलपति, कुलसचिव तथा दस वर्षों तक जनसंचार विभाग के अध्यक्ष की जिम्मेदारी को कुशलतापूर्वक निभाया। इसके साथ ही भारतीय जनसंचार संस्थान, नई दिल्ली के महानिदेशक रहे। अबतक विभिन्न विषयों पर 11 पुस्तक प्रकाशन एवं 21 पुस्तकों का संपादन तथा उनके व्यक्तित्व पर 4 पुस्तकों का प्रकाशन उनकी पत्रकारिता की सतत् जारी साधना के फलसफें बयां कर रही है। कुल 156 पृष्ठों की यह पुस्तक प्रो. संजय द्विवेदी जी के जीवनवृत्त के जरिये पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए पठनीय, प्रेरणा के दस्तावेज की तरह है। पत्रकारिता के सशक्त हस्ताक्षर के रूप में प्रो. द्विवेदी जी की अक्षर साधना अनवरत रहे तथा वे पत्रकारिता की नवपौध के प्रेरणापुरुष रहें, यही कामना है। (समीक्षक साहित्यकार एवं पत्रकार हैं)

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