विद्यार्थी बनकर सीखने वाले शिक्षक पाते हैं सम्मान: डॉ दिनेश शर्मा
- उच्च शिक्षा में राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के सफल क्रियान्वयन में शिक्षकों की भूमिका' पर राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन
- ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती भाषा विश्विद्यालय के 15वें स्थापना दिवस समारोह की शुरुआत
लखनऊ। ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती भाषा विश्विद्यालय एवं विद्या भारती उच्च शिक्षा संस्थान (अवध प्रान्त) की ओर से मंगलवार को उच्च शिक्षा में राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के सफल क्रियान्वयन में शिक्षकों की भूमिका पर राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी में मुख्य अतिथि के रूप मे राज्य सभा सदस्य एवं पूर्व उप मुख्यमंत्री डॉ दिनेश शर्मा मौजूद थे। डॉ दिनेश शर्मा ने कहा कि नई शिक्षा नीति 2020 के आने के बाद शिक्षा व्यवस्था में बदलाव हो रहा है। ऐसे में जो शिक्षक विद्यार्थी बनकर सीखता रहेगा वही विद्यार्थियों के बीच सम्मान पाएगा।
डॉ शर्मा ने कहा कि हम गर्व करते हैं कि भारत को सोने की चिड़िया और विश्व गुरु कहा जाता था। हमें विचार करना चाहिए कि ऐसा क्यों था। वास्तव में भारतीय शिक्षा और अध्यापन व्यवस्था के चलते ऐसा था। शिक्षा की वजह से ही विश्व में भारत की संप्रभुता थी। समय के साथ तमाम आक्रांता हमारे देश में आए। उन्होंने यहां की ज्ञान परंपरा को नष्ट किया। नालंदा विश्वविद्यालय के पुस्तकालय में लगाई गई आग कई दिनों तक धधकती रही। गुलामी के बाद देश की शिक्षण व्यवस्था अंग्रेजी प्रणाली पर ही चलती रही। कहने को वर्ष 1986 में शिक्षा नीति बनी पर उसमें भारतीकरण के बजाय अंग्रेजी का बोलबाला था। नई शिक्षा नीति-2020 में इसमें सुधार किया गया है। भारतीय भाषाओं के माध्यम से भारतीय ज्ञान परंपरा को इससे जोड़ा गया है। इसके साथ ही सबसे बड़ी विशेषता शिक्षकों के प्रशिक्षण की है। शिक्षकों का समय-समय पर प्रशिक्षण करते रहना चाहिए। इससे वे समय के साथ चल सकेंगे। डॉ. शर्मा ने कहा कि शिक्षा का कोई धर्म या संप्रदाय नहीं होता है। शिक्षा का सिर्फ राष्ट्रधर्म होता है।
इससे पहले प्रो जय शंकर प्रसाद पाण्डेय क्षेत्र संयोजक विद्याभारती उच्च शिक्षा संस्थान, पूर्वी उत्तर-प्रदेश, ने सभी अतिथियों का स्वागत किया। विषय प्रवर्तन करते हुए प्रो एनके तनेजा राष्ट्रीय महामंत्री, विद्याभारती उच्च शिक्षा संस्थान ने कहा कि नई शिक्षा नीति-2020 आने से पहले हम शिक्षण की भारतीय संस्कृति को भूल चुके थे। भारत में शिक्षा का व्यापक अर्थ है। पश्चिमी शिक्षा प्रणाली में जहां अर्थ को महत्व दिया गया है तो वहीं भारतीय शिक्षा प्रणाली में इसका अर्थ व्यापक है। यहां धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष जैसे पुरुषार्थों को शिक्षा में समाहित किया गया है। इसी अवधारणा पर नई शिक्षा नीति की नींव डाली गई है। नई शिक्षा नीति को इस तरह से तैयार किया गया है कि इससे विद्यार्थियों में अपनी संस्कृति के प्रति गौरव का भाव हो। प्राचीन काल में देश में तक्षशिला, नालंदा और उज्जियनी जैसे विश्वविद्यालय थे। इन विश्वविद्यालयों में पूरे विश्व का मार्गदर्शन किया है। इन विश्वविद्यालयों में पूरे विश्व से विद्यार्थी पढ़ने आते थे। नई शिक्षा नीति आने के बाद उसी ज्ञान परंपरा को आगे बढ़ाना है। इसके लिए हमें विश्वस्तरीय शोध करने होंगे। उन्होंने बताया कि शिक्षा को व्यवसाय से जोड़ने के लिए नई शिक्षा नीति में वोकेशलन कोर्स जोड़े गए हैं।
संगोष्ठी के विशिष्ट अतिथि प्रो. सच्चिदानन्द मिश्र सदस्य सचिव, भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद्, ने कहा कि प्राचीन काल से ऋषि ऋण की परंपरा रही है। इसका मतलब है कि शिक्षा के बाद गुरुदक्षिणा के रूप में आश्रम को कुछ वापस देना। शिक्षकों को भी इसका पालन करना चाहिए। शिक्षा प्राप्त करने के बाद अब उनकी बारी समाज को कुछ देने की है। शोध और नवाचार के माध्यम से शिक्षक ऐसा कर सकते हैं। इसके लिए भाषा की नहीं ज्ञान और अभ्यास की जरूरत है। शोध और नवाचार की कोई भाषा नहीं होती है। भारतीय ज्ञान प्रणाली को लेकर आगे चलेंगे तो ऐसा किया जा सकता है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रो एनबी सिंह ने कहा कि नई शिक्षा नीति के तहत शिक्षक के रूप में हमें अपनी भूमिका निभानी है। आज भले ही हम आर्थिक मामलों में पांचवी अर्थव्यवस्था बन गए हों, लेकिन शिक्षा के मामले में विश्व गुरु बनने के लिए हमें अभी और प्रयास करने होंगे। उद्धाटन समारोह में आभार ज्ञापन कार्यक्रम के संयोजक डॉ नीरज शुक्ल ने दिया सत्र का संचालन डॉ नलिनी मिश्रा, आयोजन सचिव ने किया।
- विभिन्न खेल प्रतियोगिताओं का आयोजन
स्थापना दिवस के पावन अवसर पर सांस्कृतिक एवं खेल की विभिन्न प्रतियोगिताओं का आयोजन विश्वविद्यालय परिसर में किया गया। प्रतियोगिताओ की इस फेहरिस्त में टेबल टेनिस सिंगल एवं चेस प्रतियोगिता का आयोजन स्पोर्ट्स क्लब के संयोजन में डॉ. शारिक के मार्गदर्शन में किया गया साथ ही लिटरेरी क्लब द्वारा निबंध लेखन प्रतियोगिता, बैत बाज़ी और जस्ट अ मिनट प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। जिसके समन्वयक डा. अकमल द्वारा किया गया तो वहीं कल्चरल क्लब द्वारा मेहंदी प्रतियोगिता और कलश डेकोरेशन प्रतियोगिता का आयोजन डॉ तथीर फातिमा द्वारा किया गया। स्थापना दिवस के दूसरे दिन रंगारंग कार्यक्रमों का आयोजन किया जायेगा। जिसमें मुख्य रूप से गायन प्रतियोगिता, नृत्य प्रतियोगिता, नुक्कड़ नाटक एवं माइम जैसे इवेंट रहेंगे। इन प्रतियोगिताओ में इच्छुक विद्यार्थी अपना पंजीकरण ऑन द स्पॉट करा सकेंगे।
इस अवसर पर प्रो मसूद आलम, प्रो चंदना डे, प्रो तनवीर खदीजा, प्रो. सौबान सईद सहित विश्वविद्यालय के सभी शिक्षक और विद्यार्थी भारी तादाद में उपस्थित रहे।
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