भाषा विश्वविद्यालय में दूरदर्शन दिवस पर आयोजित हुई संगोष्ठी

लखनऊ। ख़्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती भाषा विश्वविद्यालय में दूरदर्शन दिवस पर एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया। विदित है कि भारत में प्रत्येक 15 सितम्बर को दूरदर्शन दिवस मनाया जाता है। इसी श्रृंखला में ख़्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती भाषा विश्वविद्यालय लखनऊ के पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग में दूरदर्शन डे का आयोजन विभाग में हाईब्रिड मोड के माध्यम से कुलपति प्रो नरेन्द्र बहादुर सिंह के संरक्षण में किया गया। कार्यक्रम का शुभारम्भ डॉ काजिम रिज़वी ने किया। डॉ रिज़वी ने अथितियों का परिचय देते हुए कहा कि दूरदर्शन मनोरंजन, शैक्षिक, सूचनाओं का संसाधन हुआ करता था। 

कार्यक्रम में संगोष्ठी की समन्वयक विषय प्रभारी डॉ रूचिता सुजॉय चौधरी ने कार्यक्रम की रूपरेखा से अवगत कराया। डॉ चौधरी ने कहा कि दूरदर्शन लोगों को सत्यम शिवम् सुंदरम के माध्यम से सीधे संवाद करता रहा है। दूरदर्शन अपनी खास विशेषतों से आम जनता का माध्यम माध्यम रहा है। वर्ष 1959 में 15 सितम्बर के दिन दूरदर्शन की शुरुआत हुई थी। शुरुआत में इसका नाम टेलीविज़न इंडिया था, लेकिन साल 1975 में इसका नाम बदलकर दूरदर्शन कर दिया गया। आज दूरदर्शन, स्टूडियो और ट्रांसमीटर इंफ़्रास्ट्रक्चर के मामले में भारत के सबसे बड़े प्रसारण संगठनों में से एक है। दूरदर्शन, डिजिटल स्थलीय ट्रांसमीटरों पर भी प्रसारण करता है। दूरदर्शन के राष्ट्रीय नेटवर्क में 64 केंद्र, 24 क्षेत्रीय समाचार एकक, 126 रखरखाव केंद्र, 202 उच्च शक्ति ट्रांसमीटर, 828 लो पावर ट्रांसमीटर, 351 अल्पशक्ति ट्रांसमीटर, 18 ट्रांसपोंडर, 30 चौनल, और डीटीएच सेवा शामिल है। 

दूरदर्शन दिवस पर विद्यार्थियों को सम्बोधित करते हुए प्रो संजीव भानावत ने कहा कि दूरदर्शन भारत में 15 सितंबर में आरंभ हुआ। जिसके माध्यम से जन जीवन टेलीविजन तकनीक से रूबरू हुआ। चित्रहार और रंगोली आदि कार्यक्रमों से लोग मनोरंजन किया करते थे। दूरदर्शन पर प्रसारित होने वाली फिल्में अख़बारों की सुर्ख़ियां हुआ करती थीं। प्रो भानावत ने कहा कि दूरदर्शन लोक प्रसारण का सशक्त माध्यम था। जनता दूरदर्शन के माध्यम से सरकारी कार्यक्रम और योजनाओं से लाभान्वित होती थी। तत्कालीन समय में घरेलू महिलाएं में भी प्रचलित माध्यम था। 1982 में रंगीन माध्यम से प्रसारण हुआ। कुल मिलाकर यह सरकारी प्रसारण माध्यम था। दूरदर्शन के माध्यम से सरकार अपनी बात सीधे दूरदर्शन के माध्यम से मन की बात नामक कार्यक्रम से कर रही है। दूरदर्शन हास्य और विनोद का जनमाध्यम था। उस वक्त बच्चे, किशोर, युवा, किसान, महिलाएं, वृद्ध, गीत और संगीत के माध्यम से जनता से सीधा संवाद किया।

दूरदर्शन संगोष्ठी को विभाग के अध्यक्षता प्रो. चन्दना डे ने कहा कि हमें टीवी और दूरदर्शन माध्यम को याद करते हुए कहा कि हमारे समय में भी दूरदर्शन लोकप्रिय जन्माध्यम हुआ करता था। दूरदर्शन संगोष्ठी का धन्यवाद ज्ञापन डॉ शचींद्र शेखर ने प्रो संजीव भानावत का कार्यक्रम से जुड़ने के लिए आभार व्यक्त किया। डॉ शेखर ने कहा कि दूरदर्शन टीवी के पर्दे से आज मोबाइल के माध्यम से पॉकेट में आ गया है। आज एक क्लिक के माध्यम से दूरदर्शन से आसानी से जुड़ा जा सकता है। जिसके लिए केवल एक एप में माध्यम से हम सीधे लाभ ले सकते हैं। संगोष्ठी के दौरान विभाग के शिक्षक डॉ. मो. नसीब, चितवन मिश्रा सहित सभी शोधार्थी और विद्यार्थी उपस्थित रहे।

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