वेदांतपुरम आश्रम में धूमधाम से मनाई गई गुरु पूर्णिमा, जानें गुरु का महत्व


लखनऊ ब्यूरो। सनातन धर्म में गुरु को भौतिक संसार और परमात्म के बीच का सेतु कहा गया है। मान्यताओं के अनुसार, मनुष्य जन्म भले ही माता पिता देते हैं। पर मानव जीवन का सही अर्थ सद्गुरु कृपा से ही प्राप्त होता है। गुरु भव सागर पार कराने वाला गाइड होता है, जो भौतिक जीवन के संकट के समय भी पथप्रदर्शक के रूप में आपके साथ अडिग खड़ा रहता है। जिस तरह माता पिता शरीर का सृजन करते हैं। उसी तरह गुरु शिष्य का सृजन करते है। 
शास्त्रों के मुताबिक “गु” का अर्थ अंधकार और “रु” का अर्थ उसका निरोधक बताया गया है। मतलब जो जीवन से अंधकार को दूर करे उसे गुरु कहा गया है। आषाढ़ की पूर्णिमा को गुरुपूर्णिमा कहा जाता है। इस दिन गुरु पूजा का विधान है। रविवार को लखनऊ के वेदांतपुरम पपना मऊ अनौराकला आश्रम में गुरू पूर्णिमा धूमधाम से मनाई गई। महामंडलेश्वर स्वामी अभयानन्द सरस्वती जी महाराज का शिष्यों ने पूजन किया। उनका आशीर्वाद लिया।

श्रीमद्भगवद्गीता मूल ही गुरु तत्व है। गीता की लोकप्रियता इसलिए है कि यह जीवन के संघर्ष का शास्त्र है। इसमें गुरु के रूप में स्वयं विलक्षण भगवान श्रीकृष्ण हैं और यहां गुरू एवं शिष्य का संबंध अद्भुत है। मातृ-पितृ, बंधु एवं सखा के रूप में गुरू बन कर शिष्य अर्जुन काे मार्ग दिखाया है। यह ग्रंथ कर्मों की व्याख्या करता है और कहता है कि व्यक्ति कर्म का समर्पण करने से पाप से मुक्त हो जाता है। 

शास्त्रों में गुरु को ईश्वर के विभिन्न रूपों जैसे ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश्वर के रूप में भी स्वीकार किया गया है। गुरु को ब्रह्मा इसलिए कहा गया, क्योंकि वह शिष्य को गढ़ता है, उसे नव जन्म देता है। गुरु, विष्णु भी है, क्योंकि वह शिष्य की रक्षा करता है। गुरु साक्षात महेश्वर भी है, क्योंकि वह शिष्य के सभी दोषों का संहार भी करता है। मानव जीवन में दीक्षा गुरु के साथ ही अन्य 24 गुरुओं की भी महत्ता है। इनमें माता पिता का स्थान सर्वोपरि है। इसके बाद शिक्षक, प्रशिक्षक आदि का स्थान आता है।

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